Slide 1
Slide 1
Slide 2
Slide 2
previous arrow
next arrow

| मातृभूमि धर्म संघ | - एक परिचय

मातृभूमि धर्म संघ। तीन शब्दों के संगम से बना है। मातृभूमि, धर्म और संघ। मातृभूमि जैसा की शब्द से ही बोध होता है धरती मां। यानि की हमारा देश। जिस मिट्टी में हमने जन्म लिया है। वह गांव, शहर, राज्य और हमारा प्यारा देश भारत। मातृभूमि शब्द में मां की ध्वनि भी निकलती है। मातृ यानि मां, जननी, देवी। उनकी पूजा, आदर और सम्मान। उनका संरक्षण और उनको बलशाली बनाना, ताकि वह पुरूषों को और समाज को बलशाली और मर्यादित बना सके। धर्म का यहां अर्थ है धर्म की पुन: स्थापना। समाज और राष्ट्र में सदाचरण, मूल्य और भारतीय संस्कारों की स्थापना। संघ का अर्थ है संगठन।
इस तरह ‘मातृभूमि धर्म संघ’ का अर्थ हुआ मातृभूमि यानि कि हमारे देश भारत और मां, जननी यानि महिलाओं को संगठन में सर्वोच्च स्थान देते हुए समाज और राष्ट्र में धर्म एवं हिन्दुत्व की पुन: स्थापना करने का संगठन।

मातृभूमि धर्म संघ की स्थापना कुंवर राव गगन सिंह जी ने चैत्र शुक्ल तृतीया शुक्रवार मेष राशि स्थित चंद्रमा 27 मार्च 2020 को गणगौर पूजा के दिन की थी।

images

|मातृभूमि धर्म संघ| का उद्देश्य

मातृभूमि धर्म संघ का मूल उद्देश्य है समाज की पहली और मूल इकाई ‘महिला’ और ‘पुरूष’ का चरित्र निर्माण कर उसे शारीरिक और मानसिक रूप से शक्तिशाली बनाना। उसे ज्ञान और सूचना से इतना परिपूर्ण कर देना कि वह देश, दुनिया गांव-खलिहान कहीं भी रहे लेकिन वैश्विक स्तर पर उसकी बुद्धि, समझ, तर्क और निर्णय क्षमता का कोई सानी नहीं हो।

|मातृभूमि धर्म संघ| ही क्यों?

महाभारत काल की तरह आज भी जीवन और समाज में अधर्म का बोलबाला है। चारों ओर झूठ, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण का साम्राज्य फैला है। गरीब, दबे-कुचलों, असहायों की कोई सुनने वाला नहीं है। जीवन देने वाली जननी यानि की महिलाओं और बच्चियों के साथ क्या-क्या और किस हद तक हो रहा है, यहां उसका उल्लेख भी नहीं किया जा सकता। असुरी शक्तियां सिर उठाए हुए हैं। जो रक्षक हैं, वहीं भक्षक बने हुए हैं। जिस राज्य (सरकार) पर जीवन की रक्षा और सम्मान पूर्वक जीवन जीने की जिम्मेदारी है वह उसकी न्यूनतम पूर्ति भी नहीं कर पा रहा है। असहाय सी स्थिति है। सब ओर निराशा छाई हुई है। हर कोई अपने आपको अपने में समेटे हुए है। बस, यही चाहता है कि मेरा काम हो जाए। मैं सुरक्षित हो जाऊं। उसके साथ वाला या पड़ोसी उसे कोई चिंता नहीं है। हालात यह हैं कि भाई-भाई का नहीं रहा।

|मातृभूमि धर्म संघ |अन्य हिन्दू संगठनों से अलग कैसे?

आज के दौर में बहुत से हिन्दूवादी संगठन हैं। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू जागरण मंच आदि-आदि।
मातृभूमि धर्म संघ का ठीक यही उद्देश्य कि व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक रूप से सर्वांगिण विकास ही उसे देश में प्रचलित अन्य हिन्दू संगठनों से अलग करता है। अन्य हिन्दू सगंठनों और दलों ने केवल बातों और किताबों में व्यक्ति विकास की बात कही है लेकिन हकीकत में अधिकतर का उद्देश्य राजनीतिक सत्ता को पाना ही है। और इसी उद्देश्य की परिपूर्ति में वे दिन-रात लगे रहते हैं।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए कुंवर राव गगन सिंह जी ने व्यक्ति निर्माण और समाज उद्धार के लिए मातृभूमि धर्म संघ का गठन किया। उनका मानना है कि व्यक्ति सही होगा। वह अपना हर कार्य ईमानदारी और निष्ठा से करेगा तो समाज अपने आप सही हो जाएगा। और ऐसे ही भारत वर्ष एक बलशाली और प्रगतिशील राष्ट्र बनकर उभरेगा।

|मातृभूमि धर्म संघ| में महिलाओं का स्थान

मातृभूमि धर्म संघ का पहला शब्द ही मां पर है। जननी पर है। जीवनदायिनी महिलाओं के लिए है। मातृभूमि धर्म संघ में महिलाओं को सबसे ऊंचा दर्जा दिया गया है। उन्हें देवी माना गया है। क्योंकि वे देने वाली होती हैं। वह हम सबको जीवन देती हैं। हमें पालती है। पोषती हैं। इसलिए व्यक्ति निर्माण और समाज निर्माण में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका महिलाओं की है।

|मातृभूमि धर्म संघ| और धर्म

मातृभूमि धर्म संघ के मुताबिक धर्म की परिभाषा में दया, करूणा, प्रेम, त्याग, संतोष, परोपकार, सत्य, न्याय, ईमानदारी, कर्तव्य परायणता आदि होते हैं। यह सब मनुष्य में ही होते हैं। जिसमें ये ज्यादा होते हैं वह पुरुष या महिला धार्मिक होती है। हिन्दुत्व इन्हीं धार्मिक मूल्यों का संवाहक है।

|मातृभूमि धर्म संघ| एवं अन्य धर्म

मातृभूमि धर्म संघ का मानना है दूसरे धर्म क्या कर रहे हैं इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। वे अच्छा कर रहे हैं या बुरा यह उनके ऊपर हैं।

|मातृभूमि धर्म संघ|, और राजनीति

आज के दौर में सत्ता का केन्द्र राजनीति है। उसके हाथ में सारी ताकत है। समाज में धर्म एवं हिन्दुत्व की पुन:स्थापना के लिए राजनीतिक शक्ति का होना बहुत जरूरी है। मातृभूमि धर्म संघ जल्द ही इस दिशा में कदम उठाते हुए राजनीति संगठन लाएगा।

|मातृभूमि धर्म संघ| दलित आदिवासी एवं पिछड़ा वर्ग

मातृभूमि धर्म संघ वचनबद्ध है कि वह दलित, पिछड़े और आदिवासी भाई-बहनों के साथ चलेगा। राज्य (सरकार) और समाज की ओर से इनके सामने खड़ी होने वाली हर मुश्किल का संघ कंधे-से-कंधा मिलाकर साथ देगा।

|मातृभूमि धर्म संघ| की शाखाएं

किंग सेना (युवाओं का संगठन) :- कुँवर राव गगन सिंह जी वर्षों से हिन्दू और हिन्दुओं की रक्षा का प्रण लिए हुऐ हैं | वे वर्षों से समाज कल्याण और समाज सेवा में तत्पर हैं| भगवान नरसिंह को आदर्श रूप में मानते हुए उन्होंने “किंग सेना” संगठन का निर्माण किया | किंग सेना के कार्यकर्ता को ” नरसिंह की सेना ” कहा| यह संगठन हिन्दुत्व परंपरा का निर्वहन करने वाले हर भारतीय के संरक्षण, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए संकल्पबद्ध है। इस संगठन के बारे में विस्तार से जानने के लिए क्लिक करें। किंग सेना

 

मातृभूमि धर्म संघ के अन्य प्रस्तावित संगठन

  • राजनीतिक दल।

  • किसान संगठन।

  • मजदूर संगठन।

  • वनवासी कल्याण संगठन।

  • महिला संगठन।

  • बुजुर्ग संगठन।

  • व्यापार संगठन।

  • अनुसूचित जाति संगठन।

  • अन्य पिछड़ा वर्ग संगठन।

  • प्रवासी राजस्थानी संगठन।

|मातृभूमि धर्म संघ| के सामने दो चुनौतियां

कई वर्षों तक मनन और तपस्या के बाद मातृभूमि धर्म संघ के संस्थापक अध्यक्ष राव कुंवर गगन सिंह जी राव को ज्ञान हुआ भारतीय समाज और राष्ट्र में के पिछड़े बने रहने और धर्म का हास होने के दो प्रमुख कारण हैं। 

राजनीतिक चुनौती

राजनीतिक का यहां तात्पर्य है सत्ता और शासन से। साधारण शब्दों में कहें तो सरकार से। सरकार में राजनेता और प्रशासन (पुलिस, तहसीलदार, पटवारी आदि) दोनों आते हैं। इन दोनों को गठजोड़ ही सत्ता का, ताकत का शासन बनता है और आम-जनता पर राज करता है।

धार्मिक अर्थात सामाजिक चुनौती

अक्सर धर्म को आज के दौर में हिन्दू, मुस्लिम से जोड़ दिया जाता है। पहले मध्य-पूर्व और बाद में पश्चिमी देशों ने यह सब किया है। हमारे देश भारत में सदाचार, ईमानदारी, परोपकार से जीवन जीने को ही धर्म कहा गया है। इसका उल्लेख ऊपर भी किया गया है।

मातृभूमि धर्म संघ की चुनौतियों का हल

राजनीतिक

राजनीतिक समस्या का निराकरण राजनीति से ही हो सकता है। इसके लिए मातृभूमि धर्म संघ जल्द ही एक राजनीतिक संगठन लाएगी। इस दिशा में मातृभूमि धर्म संघ ने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। क्योंकि लोकतंत्र में ताकत सत्ता में ही केन्द्रीत होती है।

धार्मिक अर्थात सामाजिक

धार्मिक अर्थात सामाजिक चुनौती का हल हमारे खुद के पास है। आप सच्चे हो जायें तो सब अच्छा हो जाएगा। आप चरित्रवान बन जायें तो समाज चरित्रवान बन जाएगा। सामाजिक बदलाव की शुरुआत दूसरों से नहीं खुद से ही करनी है।