[vc_row][vc_column][consal_title ttl_pos=”ttl_center” title=”धर्म क्या है?”][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column width=”1/2″][vc_single_image image=”427″ img_size=”large”][/vc_column][vc_column width=”1/2″][vc_column_text]समाज में धर्म की पुन:स्थापना से पहले यह जान लें कि आखिर धर्म क्या है। दुनियाभर के अनेक विद्वजनों ने धर्म की अलग-अलग समय में अपने-अपने हिसाब से व्याख्या की है।
- महर्षि गौतम ने कहा कि “यतो अभ्युदयनिश्रेयस सिद्धिः स धर्म” अर्थात: लौकिक जीवन की समृद्धि, विकास और आत्म-कल्याण की प्राप्ति ही धर्म है।
- भगवद गीता, मनुस्मृति आदि में धर्म की व्याख्या जीवन की विभिन्न स्थितियों में अपने-अपने कर्तव्य की पालना से है।
- साधारण शब्दों में कहें तो जीवन की हर स्थिति में अपने कार्य को ईमानदारी से करना। दूसरों को मन से भी हानि नहीं पहुंचाना। सभी के कल्याण के बारे में सोचना और इसी दिशा में लगातार कार्य करते रहना। बड़ों का आदर। छोटों को प्यार और उनको अपने से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना। बच्चियों, महिलाओं का सम्मान करना।
इसके साथ ही धर्म का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। धर्म की रक्षा करना। यानी की जो भी गलत हो रहा है उसका विरोध करना। उसका सामना करना। उसे खत्म कर समाज में समरसता लाना।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][consal_title ttl_pos=”ttl_center” title=”महाभारत में युद्ध मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा”][/vc_column][/vc_row][vc_row full_width=”stretch_row” css=”.vc_custom_1628832318917{background-image: url(https://matrabhumidharmsangh.org/wp-content/uploads/2021/08/Untitled-design-1.jpg?id=413) !important;background-position: center !important;background-repeat: no-repeat !important;background-size: cover !important;}”][vc_column width=”1/2″][vc_empty_space height=”70px”][vc_column_text]
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”
[/vc_column_text][vc_row_inner][vc_column_inner][/vc_column_inner][/vc_row_inner][/vc_column][vc_column width=”1/2″][vc_column_text]
अर्थात:
पृथ्वी पर जब-जब धर्म की हानि होती है। अधर्म बढ़ने लगता है। तब-तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात जन्म लेता हूं। सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की पुन: स्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों में अवतरित होता रहा हूं और होता रहूंगा।
>आज से करीब 5 हजार साल पहले भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यह बात कही थी तब भी धर्म की हानि हुई थी और अधर्म का बोलबाला था। और आज भी वैसी ही स्थिति बनी हुई है।
[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][consal_title ttl_pos=”ttl_center” title=”मनुस्मृति के 8वें अध्याय के 15 वें श्लोक में कहा गया है”][/vc_column][/vc_row][vc_row full_width=”stretch_row” css=”.vc_custom_1629875648932{background-image: url(https://matrabhumidharmsangh.org/wp-content/uploads/2021/08/Untitled-design-5.jpg?id=572) !important;}”][vc_column width=”1/2″][vc_column_text]
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् II
[/vc_column_text][/vc_column][vc_column width=”1/2″][vc_column_text]अर्थात:
जो लोग धर्म की रक्षा करते हैं। धर्म उनकी रक्षा करता है। यानी की रक्षित किया गया धर्म ही रक्षा भी करता है। धर्म का नाश यानी की ईमानदारी, सत्य, परोपकार, करुणा आदि से व्यक्ति व समाज का दूर हो जाना। ऐसा होने पर अधर्म यानी की बुराइयां ही हावी होकर व्यक्ति और समाज का नाश कर देती हैं। [/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][consal_title ttl_pos=”ttl_center” title=”धर्म का अर्थ हिन्दू, मुस्लिम, जैन, सिख, ईसाई नहीं”][vc_column_text]
यहाँ ‘धर्म’ शब्द का अर्थ हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई आदि से नहीं है।
धर्म का आशय है, अपने कर्तव्यों को नैतिकता, आचरण और ईमानदारी के साथ करना। जो व्यक्ति या महिला इनका पालन करता है, वही धर्म की रक्षा करने वाला होता है या होती है।
[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][consal_title ttl_pos=”ttl_center” title=”शस्त्र और शास्त्र में परिपूर्ण”][vc_column_text]
जब-जब धर्म यानी सत्यता, करुणा, परोपकार आदि शस्त्र और शास्त्र से कमजोर होता है तब-तब अधर्म यानि बुराईयां बढ़ती हैं। इसलिए हमें अपने आपको अच्छा और दूसरों की मदद करने वाला बनाए रखने के लिए हमेशा शरीर से बलशाली यानी शस्त्र सम्मत होना चाहिए। साथ ही शास्त्र यानि की विद्या और ज्ञान में भी हमेशा अपने-आपको नवीन-नवीन सुधार करते हुए परिपूर्ण रखना चाहिए। साफ है शस्त्र और शास्त्र को हमेशा अपडेट करते रहना चाहिए। नहीं तो बुराइयां हम पर हावी होकर हमारा और समाज का नाश कर देती हैं।
[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][consal_title ttl_pos=”ttl_center” title=”|मातृभूमि धर्म संघ| का उद्देश्य”][vc_column_text]
मातृभूमि धर्म संघ का मूल उद्देश्य है समाज की पहली और मूल इकाई ‘महिला’ और ‘पुरूष’ का चरित्र निर्माण कर उसे शारीरिक और मानसिक रूप से शक्तिशाली बनाना। उसे ज्ञान और सूचना से इतना परिपूर्ण कर देना कि वह देश, दुनिया गांव-खलिहान कहीं भी रहे लेकिन वैश्विक स्तर पर उसकी बुद्धि, समझ, तर्क और निर्णय क्षमता का कोई सानी नहीं हो।
मातृभूमि धर्म संघ के संस्थापक अध्यक्ष कुंवर राव गगन सिंह जी राव का मानना है कि समाज की मूल इकाई महिला और पुरुष का धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और ज्ञान रूप से मजबूत कर दो तो समाज अपने आप मजबूत और स्वावलंबी हो जाएगा। जब समाज मजबूत होगा तो राष्ट्र मजबूत होगा। राष्ट्र मजबूत होगा तो विश्व में सिरमोर बनकर उभरेगा।
सामाजिक बदलाव को सही तरीके से अमली जामा पहनाने के लिए राजनीतिक सत्ता हाथ में होना बहुत जरूरी है। मातृभूमि धर्म संघ इस दिशा में भी काम करते हुए अपना राजनीतिक दल लेकर आएगा।
[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][consal_title ttl_pos=”ttl_center” title=”|मातृभूमि धर्म संघ| ही क्यों?”][vc_column_text]
महाभारत काल की तरह आज भी जीवन और समाज में अधर्म का बोलबाला है। चारों ओर झूठ, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण का साम्राज्य फैला है। गरीब, दबे-कुचलों, असहायों की कोई सुनने वाला नहीं है। जीवन देने वाली जननी यानि की महिलाओं और बच्चियों के साथ क्या-क्या और किस हद तक हो रहा है, यहां उसका उल्लेख भी नहीं किया जा सकता। असुरी शक्तियां सिर उठाए हुए हैं। जो रक्षक हैं, वहीं भक्षक बने हुए हैं। जिस राज्य (सरकार) पर जीवन की रक्षा और सम्मान पूर्वक जीवन जीने की जिम्मेदारी है वह उसकी न्यूनतम पूर्ति भी नहीं कर पा रहा है। असहाय सी स्थिति है। सब ओर निराशा छाई हुई है। हर कोई अपने आपको अपने में समेटे हुए है। बस, यही चाहता है कि मेरा काम हो जाए। मैं सुरक्षित हो जाऊं। उसके साथ वाला या पड़ोसी उसे कोई चिंता नहीं है। हालात यह हैं कि भाई-भाई का नहीं रहा।
आम-आदमी के शोषण का सिलसिला उसके जन्म से पहले गर्भ में ही शुरू हो जाता है। जो अस्पताल, स्कूल, ट्यूशन, कॉलेज, आरक्षण, जाति-बिरादरी, नौकरी, काम-धंधा, जमीन-जायदाद, पुलिस, कोर्ट-कचहरी, राजनीति, धर्म से होता हुआ श्मशान तक पहुंचता है। वह और उसका परिवार किसी भी स्तर पर कहीं भी नहीं बच पाता है। इससब में राज्य, पुलिस और प्रशासन जिनपऱ आम-आदमी की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है वे ही भक्षक बन गिद्ध की दृष्टि बनाए हुए हैं।
ठीक इन्ही हालात से आपको बचाने के लिए। आपकी रक्षा के लिए। आपके सम्मान पूर्ण जीवन के लिए मातृभूमि धर्म संघ का गठन हुआ है।
संगठन के संस्थापक अध्यक्ष कुंवर राव गगन सिंह का मन उन्हें हमेशा कचोटता था कि समाज में इतनी असमानता और अन्याय क्यों है। शोषण, अत्याचार क्यों है। इसका क्या कारण है। इन सबको दूर करने के लिए समय-समय पर कई समाज सुधारक आए। संगठन बने। हिन्दूवादी विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टी बनीं। उसकी सरकारें राज्यों और केन्द्र में भी बनीं। लेकिन आम-आदमी को कोई राहत नहीं मिलीं। इन्हीं सब विषयों पर गहन विचार करने और उनके समाधान के लिए कुंवर राव गगन सिंह जी ने मातृभूमि धर्म संघ की स्थापना की।
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