मातृभूमि धर्म संघ अन्य हिन्दू संगठनों से अलग कैसे?
आज के दौर में बहुत से हिन्दूवादी संगठन हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू जागरण संगठन आदि-आदि।
अयोध्या के रामलला का तो सबको ध्यान है लेकिन हमारे मन के भीतर के, घर में विराजमान, पड़ोस में, मोहल्ले में, कस्बे और शहर के मंदिरों में स्थापित भगवान श्रीराम को सभी ने भुला दिया। उनके आदर्शों को सभी ने तिलांजलि दे दी है। और इसी वजह से हमारे समाज, देश और हमारा यह हाल है।
मातृभूमि धर्म संघ के संस्थापक कुंवर राव गगन सिंह ने प्रण किया है कि वे सबके प्रिय श्रीराम को घर-घर में, गांव-शहर में पुन: स्थापित करेंगे। उनके त्याग, गरिमा और आदर्शों को व्यक्ति, समाज और हमारे देश भारत में पुन: सजीव करेंगे।
कुंवर राव गगन सिंह जी का मानना है कि भगवान श्रीराम की तरह व्यक्ति सही होगा। वह अपना हर कार्य ईमानदारी और निष्ठा से करेगा तो समाज अपने आप सही हो जाएगा। और ऐसे ही भारत वर्ष एक बलशाली और प्रगतिशील राष्ट्र बनकर उभरेगा। और यही बात मातृभूमि धर्म संघ को देश के अन्य हिन्दू संगठनों से अलग करती है।
धार्मिक व्यक्ति का बलशाली और ज्ञानवान होना बहुत जरूरी
लंका चढ़ाई के समय रामचरित मानस में दो दोहे आते हैं। जो साफ बताते हैं जब प्यार से, समझाने से आपकी कोई बात नहीं माने तो क्रोध करना गलत नहीं है। साथ ही जो जिसकी फितरत होती है वो वैसी ही जीवन पर्यंत व्यवहार करता है। बंजर भूमि या रेगिस्तान में बीज डालने से हरी-भरी फसल की उम्मीद करना बेवकूफी कहलाता है।
समुद्र देवता की तीन तक पूजा करने के बाद भी वह नहीं माने तो भगवान श्रीराम ने अपने धनुष पर अग्निबाण चढ़ा समुद्र को सुखाने का निश्चय किया हि था कि समुद्र देवता ब्राह्मण का वेश धर उनके पैरों में लौट प्राणों की भीख मांगने लगे।
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥
इसमें रामजी ने सही कहा है कि बिना भय या डर के प्रीति नहीं होती है। इसका अर्थ यही है कि आपका बलशाली और ज्ञानवान होना बहुत जरूरी है नहीं तो कोई आपको रास्ता नहीं देगा।
और हमारे राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर भी कह गए हैं….
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो
इसलिए धार्मिक लोगों का। हिन्दू वादियों का। चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। युवा हो या युवती। बालक हो या बालिका। शारीरिक और मानसिक रूप शक्तिशाली होना जरूरी है। क्योंकि कभी आपने सुना है कि किसी कमजोर व्यक्ति ने इतिहास बनाया हो। उसने कुछ किया हो। कमजोर अगर दुबला-पतला आदमी किसी को माफ करे तो आप इसे क्या कहें। इसलिए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि क्षमा….बलवान लोगों को ही शोभा देती है।
कुंवर राव गगन सिंह जी कहते हैं कि धार्मिक व्यक्ति को, हिंदुत्व वादी को कृपालु, दयालु होने के साथ-साथ शक्तिशाली भी होना चाहिए। साथ ही शास्त्र यानि ज्ञान, सूचना में भी निपुण होना चाहिए।
और यही एक मूल वजह है जो मातृभूमि धर्म संघ को अन्य हिन्दू संगठनों से अलग करती है। दूसरे धर्म के लोग क्या कर रहे हैं। हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है। हम अपने धर्म और हिन्दुत्व के लिए क्या कर रहे हैं वह महत्वपूर्ण हैं। हम अपने धर्म के प्रति कितने ईमानदार हैं। उसके रीति रिवाज और परंपराओं का कितना निर्वहन कर रहे हैं। वह महत्वपूर्ण है। परिवार में, पड़ोस में, मोहल्ले में, समाज में बुजुर्गों का, महिलाओं का, बच्चों का कितना सम्मान और रख-रखाव कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण है।
इसीलिए कुंवर राव गगन सिंह जी ने समाज की मूल इकाई पुरुष और महिला को मजबूत करने का निर्णय किया है। शस्त्र और शास्त्र दोनों से। और यही बात मातृभूमि धर्म संघ को अन्य हिन्दू संगठनों से अलग करती है।